________________
केतु अरिष्टनिवरक श्री मल्लिनाथ पाश्वनाथ पूजा
(दोहा) केतु आय गोचर विषै, करें इष्टकी हान। मल्लि पार्थव जिन पूजिये, मन वंछित सुख खान।।
(अडिल्ल छन्द) मल्लि पाश्व जिन देव सेव, बहु कीजिये। भक्ति भाव वसु द्रव्य शुद्ध कर लीजिये।।
आह्वाननम् कर तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः करौ। मम सन्निधि कर पूज हर्ष हियमें धरौ।। ऊँ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पाश्वनाथ जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट्
आह्वानन। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
(चाल नन्दीश्वर) उत्तम गंगाजल लाय मणिमय भर झारी। जिन चरण धार दे सार, जन्म जरा हारो।। मैं पूजों मल्लि जिनेश, पारस सुखकारी। ग्रह केतु अरिष्टनिवार, मनसुख हितकारी।। ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पाश्वनाथ जिनेन्द्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीखण्ड मलय तरु ल्याय, कवली सुत डारी। घि केसर चरणनि ल्याय, भव आताप हरी।। __ मैं पूजों मल्लि जिनेश, पारस सुखकारी। ग्रह केतु अरिष्टनिवार, मनसुख हितकारी।। ॐ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पाश्वनाथ जिनेन्द्राय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
तन्दुल अक्षत अविकार, मुक्ता मम सोहैं। भरले हाटक मय थाल, सुर नर मन मोहैं।। ___ मैं पूजों मल्लि जिनेश, पारस सुखकारी। ग्रह केतु अरिष्टनिवार, मनसुख हितकारी।। ऊँ ह्रीं केतु अरिष्टनिवारक श्री मल्लिनाथ पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
262