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कृष्णागरू लोभान लेके, और द्रव्य सुगन्ध मय। जिन चरण आगे अपनी पर घर, धूप धूम सुरभि भमैं।। जब राहु गोचर समय दुख दे, देय दुष्ट स्वभाव सों।
तब नेम जिनके भाव सेती, चरण पूजों चाव सों। ऊँ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्रीनेमीनाथ जिनेन्द्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अम्बा बिजोरा नारियेल, श्रीफल सुपारी सेवको। फल ले मनोहर सरस मीठे, पूज ले जि नदेव को।। जब राहु गोचर समय दुख दे, देय दुष्ट स्वभाव सों।
तब नेम जिनके भाव सेती, चरण पूजों चाव सों।। ऊँ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्रीनेमीनाथ जिनेन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल गन्ध अक्षत पुष्प सुरभित, चरु मनोहर लीजिये।
दीप धूप फलौघ सुन्दर अर्घ, जिन पद दीजिये।। जब राहु गोचर समय दुख दे, देय दुष्ट स्वभाव सों।
तब नेम जिनके भाव सेती, चरण पूजों चाव सों। ऊँ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्रीनेमीनाथ जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
आठ द्रव्य ले सार नेम प्रभु पूजिये। राहु होय ग्रह शांति पाप सब धूजिये।। मन वांछित फल पाय होय बड़ भागसो। जो पूजे जिन देव बड़े अनुरागसो।। ऊँ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्रीनेमीनाथ जिनेन्द्राय महाघ निर्वपामीति स्वाहा।
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