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राहु अरिष्टनिवारक श्री नेमिनाथ जिनपूजा
गोचर में जब आय पीड़ा करे, नेमिनाथ जिनराज तबै पूजा करे। आठ द्रव्य ले शुद्धभाव हि आनके, श्याम पुष्प मन लाय भक्तिको ठानके।।
पूजों नेम जिनेश भव्य चित्त लायके, राहु देय दुख दुष्ट राशिमें आयके। कर आह्वाननम् तिष्ठः तिष्ठः ठः ठः उच्चरों, होय सन्निधि शक्ति भक्त पूजा करों।। ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्रीनेमीनाथ जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वानन, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। परिपुष्पांजलि
क्षिपेत्।
अष्टक (गीतिका छन्द) कनक झारी मणिजडित ले, शीत उदक भरायके। प्रभु नेम जिनके चरण आगे, धार दे मन लायके।। जब राहु गोचर समय दुख दे, देय दुष्ट स्वभाव सों।
तब नेम जिनके भाव सेती, चरण पूजों चाव सों।। ऊँ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्रीनेमीनाथ जिनेन्द्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीखंड मलय मिलाय केसर, कवली सुत तामें घिसो। जिन चरण चरचत भाव धरके, पाप ताप तबै नसौं।। जब राहु गोचर समय दुख दे, देय दुष्ट स्वभाव सों।
तब नेम जिनके भाव सेती, चरण पूजों चाव सों।। ॐ ह्रीं राहु अरिष्टनिवारक श्रीनेमीनाथ जिनेन्द्राय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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