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जयमाला (दोहा) मुनिसुव्रत सुव्रत करन, त्याग करन जगजाल। शनि ग्रह पीड़ा हरनको, पढ़ो हर्ष जयमाल।।
(पद्धरि छन्द) जय जय मुनिसुव्रत त्रिजगराय, शत इन्द्र आय माथा नमाय। जस जय पद्मावती गर्भ आय, साबन वदी दुतिया हर्षदाय।।
जय जय सुमित्र घर जन्म लीन, वैशाखकृष्ण दशमी प्रवीन। जय जय दश अतिशय लसत काय, त्रयज्ञान सहित हित मित कहाय।। जय जय तन लक्षण सहस आठ, भवि जीवन में थुतिकरन पाठ। जय जय सौधर्म सुरेश आय, जन्म कल्याणक करियो सु भाय।।
जय जय तप ले वैशाख मास, सुदी दशमी कर्म कलंक नाश। जय जय वैशाख जो असित पक्ष, नौमी केवल लहि जग प्रत्यक्ष।। जय जय रचियो तब समवसरन, सुर नर खग मुनिके चित्त हरन। जय छियालीस गुण सहित देव, शत इन्द्र आय तहां करत सेव।। जय जय फागुन वदी द्वादशीय, शिवनाथ वसे मुनि सिद्ध लीय।
जय जय शनि पीडा हरन हेत, मनसुखसागर कर सुख निकेत।। ऊँ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन अनर्घपद प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
(धत्ता छन्द) मुनिसुव्रत स्वामी सब जग नामी, भव्य जीव बहु सुख करन।
मन वांछित पूरै पातक चूरै, रविसुव्रत पीड़ा हरनं।।
इति आशीर्वाद।
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