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वापी सुप्रभा मुख कोण देख, दूजे रतिकर गिरि पर सुलेख।
जिनमन्दिर सुर पूजत सु जाय, हम जजत सु जिन पद शीश नाय।।10।
ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि सुप्रभावापिका वायव्यकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
सर्वतोभद्रा वापी सुजान, तिस बीच सु दधिमुख शिखर आन। जिनमन्दिर सुर पूजत सु जाय, हम जजत सु जिन पद शीश नाय।। 11॥ ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि सर्वतोभद्रावापिकामध्य दधिमुखगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
सर्वतोभद्रा वापी मुख कोण वेश, रतिकर गिरि प्रथम कहो जिनेश ।
जिनमन्दिर सुर पूजत सु जाय, हम जजत सु जिन पद शीश नाय।।12। ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि सर्वतोभद्रावापिका वायव्यकोणे रतिकरगिरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
सर्वतोभद्रा वापी विशाल, रतिकर गिरि दूजे पर त्रिकाल।
जिनमन्दिर सुर पूजत सु जाय, हम जजत सु जिन पद शीश नाय ।। 13॥
ऊँ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि सर्वतोभद्रावापिका ईशानकोणे रतिकरगरि जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
दोहा
नन्दीश्वर उत्तर दिशा, अंजन दधिगिरि जान। रतिकर मिल त्रोदश गनों, पूजत अघ तम हान।। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे उत्तरदिशि सम्बन्धी त्रयोदश जिनालयस्थ जिनबिम्बेभ्यः अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
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