________________
अष्टक
नीर प्रासुक निर्मल लीजिये, धार श्रीश्रुतसन्मुख दीजिये।
पूजिये श्रुतज्ञान प्रवाद को, जयधवल जजि सम्यक्ज्ञानको।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितजयधवल श्रुतज्ञानाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।।
कुंकुमादिक मिश्रित चन्दनैः, त्रिविधताप नशावनशान्तकैः।
पूजिये श्रुतज्ञान प्रवाद को, जयधवल जजि सम्यक्ज्ञानको।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितजयधवल श्रुतज्ञानाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2।
धवल अक्षत धोय धरीजिये, पुंज श्रीश्रुत सन्मुख दीजिये। पूजिये श्रुतज्ञान प्रवाद को, जयधवल जजि सम्यक्ज्ञान को।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितजयधवल श्रुतज्ञानाय
अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।31
पुष्प सुन्दर नयन सुहावने, गंध लुब्ध अली मनभावने।
पूजिये श्रुतज्ञान प्रवाद को, जयधवल जजि सम्यक्ज्ञानको।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितजयधवल श्रुतज्ञानाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4।
सरस मोदक आदि बनाय के, क्षधहरण श्रुतचरण चढ़ायके।
पूजिये श्रुतज्ञान प्रवाद को, जयधवल जजि सम्यक्ज्ञानको।। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितजयधवल श्रुतज्ञानाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5।
दीप उत्तम ज्योति जगावने, मोह अंध नशावन कारने।
पूजिये श्रुतज्ञान प्रवाद को, जयधवल जजि सम्यक्ज्ञानको।। ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादमुद्राङ्कितजयधवल श्रुतज्ञानाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।
21