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हे धवल तुम्हारे शब्दों में कैसा माधुर्य भरा भारी। तेरी प्राकृतमय रचना से स्वाभाविकता दिखती सारी।11। ॐ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूत महाकर्मप्रकृतिप्राभृतधवलज्ञानाय
जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा पूजन जो इस धवल की, पढे सुने दे कान। भरे पुण्य भण्डार बहु, अनुक्रम से निर्वान।।
इत्याशीर्वादः, इति धवल पूजा।
अथ श्री जयधवल पूजा
(स्थापना) जय धवल परम प्रकाश से अरि मोहतिमिर विनाशिया। गुणधरवदनशशिकिरण निरखत मोक्षमार्गप्रकाशिया।। __ यतिवृषभ ने शुभसूत्रचूर्णि सहस्रष्ट रचना करी। जयधवल टीका अति मनोहर शेष ऋषिवर विस्तरी।1।
दोहा पूरब ज्ञान प्रवाद के दशम वस्तु अधिकार। नाम पेज्ज पाहुड त्रितय, सार खींच निरधार।2। अस्सी शत गाथा सुगम, श्रीगुणधर मुनि ईश। रच पन्द्रह अधिकार में, जो भाखी गणधीश।3। ऐसो निर्मल ज्ञान मम, हृदय विराजो आय। आह्वानन सन्निधिकरण, करूं हर्ष उर लाय।4।
ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादाङ्कित जयधवलश्रुतज्ञान !
अत्रावतरावतर संवौषट्। (आह्वान) ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादाङ्कित जयधवलश्रुतज्ञान ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्)
ऊँ ह्रीं श्रीजिनमुखोद्भूतस्याद्वादाङ्कित जयधवलश्रुतज्ञान! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्)
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