________________
दोहा षट-षट चतु-चतु बीस सब, संस्थानिक जान। तिनको हति शिवपुर गये, ते पूजों भगवान।।
ऊँ ह्रीं शिरीरआदिविंशतिविनाशनाय सिद्धपरमेष्ठिने अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।8।
(कुसुमलता छन्द) औदारिक वैक्रियकाहारक तैजस जानो। कार्मान मिल पन शरीर, ये ही परमानो।। ये ही बंधन नाम, ये ही संघात पंच भनि। इन्द्री पंच मिलाय, शरीरादिक सु बीस गनी।।
ऊँ ह्रीं शरीरादिविंशतिप्रकृतिघाताय सिद्धपरमेष्ठिने अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥9॥
दोहा औदारिक वैक्रियक, आहारक आंगोपांग। अशुभ चाल शुभ चाल मिल, पैंसठ प्रकृति
सुआंग॥ ॐ ह्रीं उपांगशुभाशुभवृत्तप्रकृतिघाताय सिद्धपरमेष्ठिने अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।10।
अडिल्ल वर्णादिककी बीस, सेल आदि सु जान तन। संस्थानादिक बीस, आदि सम चतुर नाम भन।।
शरीरादि पुनः बीस, औदारिक आदि बखानो। दोय चाल मिलके, उपसंग पैसठ पहिचानो।। ऊँ ह्रीं पंचाधिकष्टिपिण्डप्रकृतिनाशनाय सिद्धपरमेष्ठिने अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥11॥
(अडिल्ल छन्द) अब अट्ठाइस प्रकृति, अपिण्ड बखानिये। प्रथम अगुरु लघु, दुतिय स्वास सो जानिये।
तीजी है अयघात, तूर्य परघात जू! आतापन उद्योत, जान विख्यात जू।।
204