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पूरब दिश मेरु मन्दिर तनी सारजी। जान विजयारधा षोडशा भारजी। ऊपरै जिन भवन सवन के हैं सही। सो जजौं अर्घ तें वीनती मुख कही।।12। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरु पूर्वदिशासम्बन्धिषौडशविजयाधेषु षोडशजिन चैत्यालयेभ्यो
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
दच्छन दिश मेरु मन्दिर तनी जायजी। एक रूपाचला खगन को थाय जी।। ता विर्षे एक जिनराज मन्दिर सही। सो जजौं अर्घ तें वीनती मुख कही।।13।। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरु दक्षिणदिशासम्बन्ध्येकविजयार्ध गिरावेकजिनालयाभ्यं
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
मेरु मन्दिर तनी पछिम दिश भाय है। षोडशा खगाचल रूप मय पाय है।। तिन धरै देव जिन भवन षोडश सही। सो जजौं अर्घ तें वीनती मुख कही।।14।। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरु पश्चिमदिशासम्बन्धिषोडशविजयार्धेषु षोडशजिनालयेभ्यो
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
मन्दिर शुभ मेरुकी उत्तर दिश जायजी। खगाचल एक गिर रूपमय थायजी।। ता विर्षे एक जिनराज थल है सही। सो जजौं अर्घ तैं वीनती मुख कही।।15। ___ऊँ ह्रीं मंदिरमेरुत्तरदिशासम्बन्धिषोडशविजयार्धेषु षोडशजिनालयेभ्यो
अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
आदि इन मेरु मन्दिर तनी लारजी। थान बहु सुभग सब अकिरतम सारजी।। तिन विषै अकिरतम ठाम जिनजे सही। सो जजौं अर्घ तें वीनती मुख कही।।16।।
ऊँ ह्रीं मंदिरमेरु सम्बन्धिजिनालयेभ्यो महाघ निर्वपामीति स्वाहा।
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