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दोहा खंड धातकी पछम दिश, अचल मेरु शुभ धाम।
ता सम्बन्ध तीरथ सवै, जजौं जिनेश्वर ठाम।।12।। ऊँ ह्रीं धातकीपश्चिमदिश्यचलमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयेभ्यो पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा।
इति अलचमेरु पूजा समाप्त।
अथ चतुर्थ मंदिर मेरु संबंधी जिनालय पूजा
(मुनियानन्द की चाल) अर्घ यह कर धरा पूर्व दिशा जानिये। मेरु चैथा भला मंदर सुख मानिये।। तासम्बन्धी जिते जिन थानका है सही। सो सकल थापि इहां जजौ पुन्य की मही।। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरुसम्बन्धिजिन चैत्यालयानि अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वनम्।
__ऊँ ह्रीं मंदिरमेरुसम्बन्धिजिन चैत्यालयानि अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं मंदिरमेरुसम्बन्धिजिन चैत्यालयानि अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अथाष्टक (भंजंगप्रयात छन्द)
लियानीर प्राशुक भले पात्र माहीं। धरी भक्त उरमें लिये हाथ ठाहीं।। करूँ वीनती गुनन की गाय माला। जजौं मेरु मन्दिर सम्बन्धी जिनाला॥1॥ ऊँ ह्रीं मंदिरमेरुसम्बन्धिजिनालयेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
भला अगर चंदन घसा नीर माहीं। धरे गंध बहु भंवर गुंजार लाहीं।। लिया पात्र माहीं कहं भक्त माला। जजौं मेरु मन्दिर सम्बन्धि जिनाला।।2।।
ऊँ ह्रीं मंदिरमेरुसम्बन्धिजिनालयेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
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