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॥ वेसरी छन्द ॥
अचल मेरु सम्बन्धी जानौं, हैं जिन थान स कहौ बखानौ । अरु पर्वत गिर याकी लारा, सुन तैं जीव लहै पुर सारा।।2।। जहां-जहां जिन मन्दिर होई, सो-सो थान कहौं सुनि सोई। चव्वन षोडश जिन थल धारा, सुन तैं जीव लहै पुन सारा॥3॥
चार कहे गजदंता भाई, इन पै चव जिन गेह बताई । सो भी रतन मई शुभकारा, सुन तैं जीव लहै पुन सारा॥4॥ जम्बू शाल्मली वृक्ष जानौं, इन जुग पै जुग जिनथल मानौं। तहँ भी सुर खग का पै सारा, सुन तैं जीव लहै पुन सारा ।। 5 । षोडश गिर वक्ष्यार हैं भाई, तिन पै षोडश जिन गृह पाई। तहा जाय पूजौं शुभ धारा, सुन तैं जीव लहै पुन सारा।।6।।
विजयारथ चौंतीसा जानौ, ते सब चांदीमय तन थानौ । तिनपै चौतिस जिनथल भारा, सुन तैं जीव लहै पुन सारा॥7॥ इक्ष्वाकार दोय गिर जानौ, इन पै दोय जिनालय मानौ । तहां सुरखग पूजैं हितकारा, सुन 'तैं जीव लहै पुन सारा॥8॥ इत्यादिक जिन मंदिर भाई, सबै थान जिय की सुखदाई। ये सब तीरथ थान अपारा, सुन तैं जीव लहै पुन सारा ॥9॥ जो पूजै परतछ तहँ जाई, ताके उदय पुन्य होय भाई। हम परोक्ष गुन गावें प्यारा, सुन तैं जीव है पुन सारा॥10॥ हम यहां पूज्य भावना भावैं, ताही कर भव सफल करावैं। गावै राग धार गुन भारा, सुन तैं जीव लहै पुन सारा ।।11।।
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