________________
अचलमेरु की दक्षिण सोय, तीन 'कुलाचल गिर शुभ जोय। जिन पै तीन जिनालय जान, ते हू पूजौं शक्ति प्रमान ॥ 8 ॥
ऊँ ह्रीं अचलमेरु दक्षिणदिशि त्रिकुलाचलेषु त्रिजिनचैत्यालयोभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अचल मेरु उत्तर दिस जाय, तीन कुलाचल परवत पाय।
तिन पै तीन जिनालय जान, ते हू पूजौं शक्ति प्रमान ॥9॥
ऊँ ह्रीं अचलमेरुत्तर दिशि त्रिषुकुलाचलेषु त्रिजिनालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अचल मेरु की पूरब जोय, आठ वक्ष्यार महा गिर पाय।
तिन इक इक पै है जिनथान, तेहों पूजौं शक्ति प्रमान || 10।।
ऊँ ह्रीं अचलमेरु पूर्वदिश्यष्टवक्ष्यारगिरिष्वष्ट जिनालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पच्छम अचल मेरु को जोय, आठ बक्ष्यार बढ़े गिर सोय । तिन पै आठों ही जिन थान, तेहूँ पूजौं शक्ति प्रमान ।।11।।
ऊँ ह्रीं अचलमेरु पश्चिमदिश्यष्टवक्ष्यारेष्टवष्टजिनालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अचल मेरु की पूरब जोय, हैं बिजारथ षोडशसोय।
तिन पै षोडश ही जिन थान, सो हौं पूजौं शक्ति प्रमान ।। 12 ।।
ऊँ ह्रीं अचलमेरु पूर्वदिशि षोडशविजयार्थेषु षोडशजिनालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अचल मेरु की दक्षिण भौम, बिजयारध गिर है इक सोम ।
ता ऊपर इक जिनको थान, सोहू पूजौं शक्ति प्रमान।।13।
ॐ ह्रीं अचलमेरु दक्षिणदिश्येकविजयार्धोपर्येक जिनालयार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
179