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नंदन नाम महा बन सोय, अचल मेरु के ऊपर जोय । ताके मांहिं चार जिनथान, तेऊ पूजों शक्ति प्रमान ॥ 2।। ऊँ ह्रीं अचलमेरुनंदनवनसम्बन्धिचतुर्जिनालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अचल मेरु के ऊपर सोय, सोमनस नाम वन अद्भुत जोय। तामें चार जिनालय जान, ते हों पूजों शक्ति प्रमान ॥3॥ ऊँ ह्रीं अचलमेरु सौमनसवनसम्बन्धिचतुर्जिनालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पांडुक वन सब ऊपर जोय, अचल मेरु सम्बन्धी सोय । ता विच चार जिनालय जानि, ते हूँ पूजों शक्ति प्रमान।।4। ऊँ ह्रीं अचलमेरु पांडुकवनसम्बन्धिचतुर्जिनालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अचल मेरु की दक्खिन दिशा, जंबू वृक्ष ऊपरे लसा।
एक जिनेसुरजी का थान, सो ही पूजों शक्ति प्रमान ॥ 5॥
ऊँ ह्रीं अचलमेरु दक्षिणदिशस्थजंबूवृक्ष्यैकजिनचैत्यालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अचल मेरु की उत्तर सोय, सालमली वृक्ष मणमय जोय।
तापै एक जिनेसुर थान, सोहू पूजौं शक्ति प्रमान ॥6॥
ऊँ ह्रीं अचलमेरुत्तरदिशायाः शाल्मलिवृक्षोपर्य्येक जिनचैत्यालयार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
अचल मेरु के चार बखान, गजदंता परवत हित दान।
तिनपै चार जिनालय जान, तेहू पूजौं शक्ति प्रमान ॥7॥
ऊँ ह्रीं अचलमेरु चतुर्गजदन्तोपरिचतुजिनालयेभ्यो अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
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