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दोहावसु करमन को नाश कर, अविनाशी पद पाय।
पूजों चरण सरोज को, मनवांछित फलदाय।। ओं ह्रीं मित्रधरकूटतः श्रीनमिनाथ जिनेन्द्रादि नौसौकोड़ाकोडि एकअरब पैंतालिसलाख सात हजार नौसौ व्यालीस मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
20. पार्शवनाथ, सुवर्णभद्रकूट
दोहासुवरणभद्र जु कूट पै, श्री प्रभु पारसनाथा जॅहते शिवपुर को गये, नमों जोरि युग हाथ।।
(त्रिभंगी छन्द) मुनि कोड़ि वियासी, लाख चौरासी, शिवपुरवासी, सुखदाई। सहसपैंतालिस, सातसौव्यालिस तजि के आलस गुणगाई।। भवदधितें, तारण, पतितउधारण, भवदुखहारण, सुखकीजे। यह अरज हमारी सुन त्रिपुरारी, शिवपद भारी, मोहिदीजे।
(पद्धरि छन्द) यह दर्शनकूट अनन्त लह्यो, फल षोडशकोटि उपास कहो। जग में यह तीर्थ कह्यो भारी, दर्शन तें पाप कटें सारी।।
(मोतीदास छन्द) टरें गति बंदत नर्क तिर्यंच, कबहु दुख को नहि पावें रंच। यही शिवका जग में है द्वार, अरे नर बन्दो कहत ‘जबार'॥
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