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11. विमलनाथ, सुवीरकुलकूट (कुसुमलता छन्द) श्री सुवीरकुल कूट परम सुन्दर सुखदाई। विमलनाथ भगवान जहाँ पंचमगति पाई।। कोडि जुसत्तर सात लाख षट्सहस जु गाई।सात शतक मुनि और वियालीस जानो भाई।
दोहाअष्टकर्म को नष्ट कर, मुनि अष्टमक्षिति पाय। तिनप्रति अध्य चढ़ावहुं, जनम मरण दुख जाय। विमलदेव निर्मल करण, सब जीवन सुखदाय।
मोतीमुख वन्दत चरण, हाथ जोर शिरनाय।। ओं ह्रीं सुवीरकुलकूटतः श्रीविमलनाथ जिनेन्द्रादि सत्तरकोडि सातलाख छह हजार सात सौ व्यालीस मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
12. अनन्तनाथ, स्वयम्भूकूट (अडिल्ल छन्द) कूट स्वयम्भू नाम परम सुन्दर कह्यो। प्रभु अनन्त जिननाथ जहाँ शिवपद लह्यो।। मुनि जु कोड़ाकोडि छियानवे जानिये। सत्तर कोडि जु सत्तरलाख प्रमानिये।।
सत्तर सहस जु और सातसै गाइये। मुक्ति गये मुनि तिनको शीश नवाइये।। कहे 'जवाहरलाल' सुनो, मन लायके। गिरिवर को नित पूजों अतिसुख पायके।।
सोरठापूजत विघन पलाय, ऋद्धि सिद्धि आनद करे।
सुरशिवको सुखदाय, जो मनवच पूजा करे। ओं ह्रीं स्वयम्भूकूटतः श्री अनन्तनाथ जिनेन्द्रादि छियानवेकोड़ाकोडि सत्तरकोडि सत्तरलाख सत्तरहजारसातसौ मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
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