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________________ कहे और जु लाख बतीस जू, सहस व्यालिस कहेययतीश जू।। अवर नौ सौ पाँचसु जानिये, गये मुनि शिवपुर को मानिये। करहिं जे पूजा मन लायके, धरहिं जन्म न भव में आयकें।। ओं ह्रीं विद्युत्प्रभकूटतः श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्रादि अठारह कोड़ाकोडि व्यालिसकोडि बत्तीसलाख व्यालीसहजार नौसौपांच मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः __ अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 10. श्रेयांसनाथ, संकुलनाथ (जोगीरासा) कूट जु संकुल परम मनोहर, श्री श्रेयांस जिनराई। कर्मनाश कर शिवपुर पहुँचे, बन्दों मनवचकाई।। छयानव कोड़ाकोडि जानो, छयानव कोडि प्रमानो। लाख छियानवे सहसमुनीश्वर, साढ़े नव अब जानो।। ता ऊपर व्यालीस कहे हैं, श्री मुनि के गुण गावें। त्रिविधयोगकरि जो कोई पूजें, सहजानंद पद पावें।। सिद्ध नमों सुखदायक जग में, आनंद मंगलदाई। जजों भावसोंचरण जिनेश्वर, हाथ जोड़ि शिरनाई।। परममनोहर थान सु पावन, देखत विघन पलाई। तीन काल नित नमत ‘जवाहर' मेटो भव भटकाई।। जॅहतें श्री मुनि सिद्ध भये हैं, तिनको शरण गहाई। जापद को प्रभु प्राप्त भये हो, सो पद देहु मिलाई।। ओं ह्रीं संकुलकूटतः श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्रादि छयानवे कोड़ाकोडि छियानवेलाख नौहजार पांचसौव्यालीस मुनि सिद्धपदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 141
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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