________________ पूतनावास्तुदेवाय स्वाहा। 46. ऊँ ह्रीं क्रौं पापराक्षसीवास्तुदेवाय स्वाहा। 47. ऊँ ह्रीं क्रौं चरकीवास्तुदेवाय स्वाहा। पृथ्वी विकारात्सलिल प्रवेशात्, अग्निर्विदाहात्पवन प्रकोपात्। चौर प्रयोगादपि वास्तुदेवाः, चैत्यालयं रक्षतु सर्वकाल।। तिर्यक् प्रचारा दशनेः प्रपातात्, वीजप्ररोहा द्रुम स्त्रंडतापात्। कीट प्रवेशादपि वास्तुदेवाः, चैत्यालयं रक्षतु सर्वकाल।। पुष्पांजलिं क्षिपेयुः (इसके बाद हवन शान्ति मंत्र की आहुतियां देकर शान्तिपाठ कर विधान समाप्त करना चाहिए) 1409