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वास्तु देवानां पृथगिष्टि
आराधना श्लोकग्राम क्षेत्र गृहादि भेद विविधो वींभाग मध्याश्रयस्ततभ्दाग परिच्छिदा बहुविध स्वात्म प्रदेशो विभुः।
ब्रह्मा दिक्पति पूर्व देवनि करैरात्मो न्मुखैर्वेष्टितो, लाजाज्यानिवत दुग्ध भक्त मधुना गृहातु रक्त प्रभः।।1।।
आह्वानॐ आं क्रौं ह्रीं रक्त वर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन-वधु चिन्ह सपरिवार हे ब्रह्मन
आगच्छ आगच्छ स्व स्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा।
बलि विधानॐ ब्रह्मणे स्वाहा। ब्रह्म परिजनाय स्वाहा। ब्रह्मा अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ॐ भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भूर्भुव स्वाहा। स्वः स्वाहा
स्वधा।
अर्घहे ब्रह्मन् इदमध्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं, दीपं, धूपं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फलं स्वास्तिकं यज्ञ
भागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।।1।। बलिं वस्तु- चावल की घानी, शक्कर, घी, दूधपाक।
यस्यार्थं क्रियते पूजा तस्य शान्तिं भवेत सदा, शान्तिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः।।
(शान्तिधारा)
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