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मदन्मयविभूभि रोह स्तमालनीलः सुरभिः करोतु। विभास्वंदगार विरूढय श्रीर्गणेश्वरराधन घूपधूमः॥ ऊँ ह्रीं पूर्वाचार्येभ्यो धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।।7।
हस्तद्वये संकरनीरर्मूघ्नि गंधच्छलाब्जांत नभोंऽतराणि । मुनीश्वर श्रीचरणांचतानि स्वयं फलमनीष्ट फलाय संतु ऊँ ह्रीं पूर्वाचार्येभ्यो फलम् निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
गणगणमणिसिंधून भव्यलोकैकबंधून्। प्रकटितजिनमार्गान् तथ्य नित्यात्मवर्गान्।। परिचितनिजतत्वान् पादके शेषदत्तान् । समरसजिन चंद्रानयधामो मुनींद्रा || अयं ॥ 8॥ ज्वलितसकललोकालोक लोकत्रय श्री । कलितललित मूर्ते कीर्तितेंद्रे मुनींद्रैः ।। मुनिवर तव पादोपांततः पातयौमों । जिनसमय विधत्तान् वर्तितान् शान्तिधारा। शान्तिधारा। देवासुरेन्द्र मनुजेंद्र भणीश्वरणाम्। रत्नोज्वलन्मुकुट कुंडल धृष्टपाईवे।।
सिद्धेदु पक्ष खचर स्तवनीय वन्दे। पुष्पांजलिपकरपादयुगं मुनीश।। पुष्पांजलि।
(इसके बाद यंत्र पूजा करके लाल वस्त्र के ऊपर सप्तधान्य का दिए गए चित्र अनुसार मॉडना पूरकर मण्डल के आगे तीर्थंकर कुण्ड बनाऐं, उसके आगे थापना स्थापन करें आगे पृथगिष्टि अनुसार प्रत्येक श्लोक पाठ के बाद आव्हान के पुष्प थापना पर क्षेपण करें। बलि विधान मंत्र की दशांग धूप की आहुति कुण्ड में देवें तथा अर्घ बोलकर बलिवस्तु के पत्ते पर श्रीफल जनेऊ ध्वजा रोली रक्षासूत्र तथा दीपक के साथ सप्तधान प्रथम खण्ड में चढ़ाएं। इस प्रकार 49 खण्डों में इसी क्रम से चढ़ाएं।)
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