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(गीतिका छन्द) सम्मेदगढ़ है तीर्थ भारी, सबहि को उज्ज्वल करे।
चिरकाल के जे कर्म लागे, दर्शतें छिन में टरें। है परमपावन पुण्यदायक, अतुल महिमा जानिये। है अनूप सुरूप गिरिवर, तासु पूजन ठानिये।।
(दोहा) श्री सम्मेदशिखर सदा, पूजो मन वच काय। हरत चतुर्गति दुःख को, मनवान्छित फलदाय।।
ओं ह्रीं श्री सम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्र ! अत्र अवतर अवतर सम्वौषट्।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। अत्र मम सन्निहि भव भव वषट्।
___ अथाष्टक (अडिल्ल छन्द) क्षीरोदधि सम नीर सु निरमल लीजिये। कनककलश में भरके धारा दीजिये।। पूजों शिखरसम्मेद सुमन वच काय जी। नरकादिक दुख टलें, अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं विंशतितीर्थंकराद्यसंख्यातमुनि सिद्धप्रदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः
जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा।
पयसों घसि मलयागिरि चन्दन लाइये। केसर आदि कपूर सुगन्ध मिलाइये।। पूजों शिखरसमेद स, मन वच काय जी। नरकादिक दख टरें, अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं विंशतितीर्थंकराद्यसंख्यातमुनि सिद्धप्रदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः
संसारतापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा।
तन्दुल धवल सुवास सुउज्जवल धोयके। हेमरतन के थार भरों शुचि होय के।। पूजों शिखरसमेद सु, मन वच काय जी। नरकादिक दुख टरें, अचलपद पाय जी।। ओं ह्रीं विंशतितीर्थंकराद्यसंख्यातमुनि सिद्धप्रदप्राप्तेभ्यः श्रीसम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यः अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
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