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कर्म एक वेदनी दोय भेव, जिनकों सुख दुख देवे स्वमेव। हो वेदनि विजय अबाध थान, ते सिद्ध जजों त्रय जग प्रधान।। ऊँ ह्रीं द्विप्रकारवेदनीयकर्मरहितसिद्धेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मोह दो प्रकार वश जगत जोर, तिनजिय सम्यक गुण जयो सोर।
ता मोह विजय सम्यक्त्ववान, ते सिद्ध जजों त्रय जग प्रधान।। ऊँ ह्रीं द्विविधमोहकर्मविनाशकसिद्धेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
कर्म आयु चार वश जगत जेर, पोड़े पग ज्यों परवश पड़े। तिन आयुघाति अवगाह ठान, ते सिद्ध जजों त्रय जग प्रधान।। ऊँ ह्रीं चतुःप्रकारायुःकर्मविनाशकसिद्धेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
कर्म नाम चतेरा ज्यों बखान, इन घाति अमूरति भये सुजान।
गति स्वांग धरन त्यागो महान, ते सिद्ध जजों त्रय जग प्रधान।। ऊँ ह्रीं त्रिनवतिप्रकारनामकर्मविनाशकसिद्धेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
ये गोत्रकर्म दोविध सरूप, ता वशि कबहूँ फिर रॅकभूप। ये नाशि अगुरुलघु गुण समान, ते सिद्ध जजों त्रय जग प्रधान।। ऊँ ह्रीं गोत्रकर्मविनाशकसिद्धेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
विधि अन्तराय कर्म पाँच भेव, जिन जियको गुन धात्यो स्वमेव।
ताको हति के बल अनन्त ठान, ते सिद्ध जजों त्रय जग प्रधान।। ऊँ ह्रीं पंचप्रकारान्तरायकर्मविनाशकसिद्धेभ्यः अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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