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श्रीफल-लोंग-सुपारी भारी पिस्ता नये चढ़ावो। कहत जिनेश्वर-मुखते वानी तुम ह सुर शिव जावो। सु तारक पूजत हों जय समवसरण में जाय सु तारक पूजत हों।
श्री चौबिस जिन के पाय स तारक पूजत हों।। ऊँ ह्रीं समवसरणस्थितजिनेन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल-फल अध्य बनाय गाय गुण पढि जयमाल सु नाचों।
तुच्छबुद्धि कवि 'लाल' पाय के वाँचत मन धर सांचो।। सु तारक पूजत हों जय समवसरण में जाय सु तारक पूजत हों।
श्री चौबिस जिन के पाय सु तारक पूजत हों।। ऊँ ह्रीं समवसरणस्थितजिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाल - दोहा समवसरण के बीच में श्रीमण्डप सुविशाल। बीच विराजे शम्भु जी ‘लाल' भने जयमाल।।
(त्रिभंगी छन्द) जय जय गुण-सुन्दर पुरन्दर धरम धुरन्धर जगपते। जगमग तसु ज्ञानं दुर्णय भानं जोग-निधानं देव-नते।।
(पद्धरि छन्द) जय चार घातिया घात नमस्ते, राग-द्वेष दो टारि नमस्ते। केवलदर्शन पाय नमस्ते, परमौदारिक-काय नमस्ते।।
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