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पूर्वदिशा नवस्तूप पूजा प्रारम्भ
दोहा
समवसरण जिनराज को पूरब दिशा बताय। शोभित तूप सुहावनै पूजों नव हरषाय।। ॐ ह्रीं पूर्वदिशि नवस्तूप-जिनप्रतिमाः अत्र अवतार अवतरत संवौष्ट। (आह्वानं)
ॐ हीं पूर्वदिशि नवस्तूप-जिनप्रतिमाः अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं पूर्वदिशि नवस्तूप-जिनप्रतिमाः अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
(सन्निधिकरणम्)
अष्टक (सोरठा छन्द) नीर सु द्रह को सार रत्न-जडित झारी भरों।
तूप सु नव सुखकार पूरब-दिश पूजा करों।। ऊँ ह्रीं पूर्वदिशि नवस्तूपस्थ जिनप्रतिमाभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन केसर गार रत्न-कटोरी में धरों। तूप सु नव सुखकार पूरब-दिश पूजा करों।।
ॐ ह्रीं पूर्वदिशि नवस्तूपस्थ जिनप्रतिमाभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
मुक्ताफल-उनहार अक्षत जिन आगे धरों। तूप सु नव सुखकार पूरब-दिश पूजा करों।।
ऊँ ह्रीं पूर्वदिशि नवस्तूपस्थ जिनप्रतिमाभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
महकें फूल अपार काम देख आपहिं डरों। तूप सु नव सुखकार पूरब-दिश पूजा करों।। ऊँ ह्रीं पूर्वदिशि नवस्तूपस्थ जिनप्रतिमाभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
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