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फिर-फिर सुर नृत्य करें बनाय, ता थेई-थेई-थे ताल लाय।। जहाँ बाजत वीर-मृदंग साज, मुहचंग-मुरज-मुरली अवाज।
जय सुर गावत धुनि रहौ पूर, गावत सु ख्याल झुरमुट हजूर।। जय छमछमछम घुघरू बजाय, जय ठम-ठम-ठम कि चलें सु धाय। जय द्रम-द्रम-द्रम बाजत मृदंग, जय झुक-झुक-झुक नाचत अभंग।।
जॅह झुमरे खेलत सुर अपार, बाजत समाज आनन्दकार। जय फिर-फिर जिन को शीस-नाय, बहु पुण्य लहावत सुर सुराय।।
जय ताही मण्डप में निहार, श्री श्रुतकेवलि हृदयें विचार। जय मण्डप-वर्णन कियो गाय, मण्डप के चारों कोन लाय।।
सब छोटे मण्डप चार जान, मणिमयी रतन-सों जड़े मान। जय तिनमें शास्त्र बचत निहार, छह द्रव्यन की चर्चा विचार।।
जय भव्यजीव समझें सुधार, जिनधर्म परम आनन्दकार। जय भूमि सातवीं को बखान, जय भाषों सुन अघ होय हान।।
जय जय केवलज्ञानी जिनेश, जय तिन-पद पूजत हैं सुरेश। जय-जय-जय वर्णन बहु विशाल, जय शीश नाय पूजत सु ‘लाल'॥
दोहा भूमि सातवीं की कही पूजा सरस सुजान। केवलज्ञानी दर्शकर पूजत हैं मतिमान।
ॐ सप्तमभूमौ केवलज्ञानिजिनेभ्यः पूर्णाध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अडिल्ल जो बाँचे यह पाठ सरस मन लायकें, सुने भव्य दे कान सु मन हरषायकें। धन-धान्यादि पुत्र-पौत्र-सम्पति धरे, नर-सुर के सुख भोग बहुरि शिवतिय वरे।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
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