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जयमाला - दोहा चौथी भूमि सुहावनी पूजा भई विशाल। शुभ-शुभ शब्द मिलायके ‘लाल' भने जयमाला।।
(पद्धरि छन्द) जय-जय श्री वृक्ष अशोक जान जय वर्णन ताको हृदय-आन। जय वृक्ष अशोक जु दिपे सार सब वृक्षन में भूपति निहार।। जय ताकी चारो दिश बखान जिनमन्दिर चार कहे सूजान। जय पीठ तीन तापर जु सार शोभे श्री गन्धकुटी विचार।। जय ता-बिच सिंहासन अनूप जय तापर कमल रचो सरूप। जय तापर प्रतिमा जिन सु देव जय राजत एक करो सु सेव।। जय चारों दिश ऐसे सु जान जय श्री अरिहन्त विराजमान। जय तीन छत्र शिर शोभकार त्रिभवन के ईश्वर कहत सार।। मोतिन की झल्लरि बहुविशाल जय छत्रन में लटकै जु लाल। जय प्रातिहार्य-वसु दिपें सार तिनकों लख सुर नाचें अपार।। जय बड़ी विभूति विलोक देव ता थेइ-थेइ-थेइ-थेइ करत सेव।
बाजत मृदंग-बीनादि सार जय सब समाज बाजत सु धार। जय चारों दिश फिरिकें सढ़ार जिनराज सुगुण जय-जय उचार। जय क्षीरोदधि उज्ज्वल सु नीर झट लाय करत जिन न्हव वीर।। जय फिर पूजत वसु द्रव्य लाय जय नृत्य करत जिनगुण सु गाय।
जय-जय परदक्षिण देहि तीन जय चारों दिश थिरकें प्रवीन। जय-जय श्री जिनवर-गुण विशाल तिनकौं मैं नमन करो त्रिकाल।
तिन आगे मानस्तम्भ सार जय शोभे बहु आनन्दकार।। जय-जय मुख इन्द्र करें उचार अस्तुति-जिनराज पढ़ें विचार। जय चक्रवर्ति-बलदेव जान जय नारायण-प्रतिहरि प्रमान।। जिनशासन में आनन्द-धार पददक्षिण देहि अनेक बार।
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