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'आग्नेय' दिशा अनूप सोहत, वन अशोक सुहावनो।
तहँ भूपवृक्ष अशोक जानो, पूज जिन निज-अघ-हनो।। ऊँ ह्रीं आग्नेयदिशि अशोकवनवृक्षस्थ जिनप्रतिमाभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर केशर मलय पिसकर, सुरभि दशदिश में भई। श्री जिन सु पूजत पूज हूजत, भव सु दाह विलय गई।। 'आग्नेय' दिशा अनूप सोहत, वन अशोक सुहावनो।
तहँ भूपवृक्ष अशोक जानो, पूज जिन निज-अघ-हनौ।। ऊँ ह्रीं आग्नेयदिशि अशोकवनवृक्षस्थ जिनप्रतिमाभ्यः सुगन्धं निर्वपामीति स्वाहा।
अति सरस तन्दुल चन्द्र-सम वन, श्वेतवर्ण सु लीजिये।
प्रक्षाल के प्रासुक सु पानी, पुंज सुन्दर दीजिये।। 'आग्नेय' दिशा अनूप सोहत, वन अशोक सुहावनो।
तहँ भूपवृक्ष अशोक जानो, पूज जिन निज-अघ-हनौ।। ऊँ ह्रीं आग्नेयदिशि अशोकवनवृक्षस्थ जिनप्रतिमाभ्यः अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
कमल-केतकी अरु गुलाब सु, गन्ध-महकत लाइये। श्री जिन सु अग्र चढ़ाय के भवि, समरबाण विलाइये।। 'आग्नेय' दिशा अनूप सोहत, वन अशोक सुहावनो।
तहँ भूपवृक्ष अशोक जानो, पूज जिन निज-अघ-हनौ।। ॐ ह्रीं आग्नेयदिशि अशोकवनवृक्षस्थ जिनप्रतिमाभ्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
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