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(पद्धरि छन्द)
अचलापुर की दिशि ईशान, गिरिमेरु शिखर धर परम ध्यान । आहूठकोडि मुनि मोक्ष पाय, तिनकों, त्रिकाल हम शीश नाय ।।
ऊँ ह्रीं श्री सार्धत्रयकोटिमुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः अचलापुरग्रामस्य ईशान दिग्भागस्थ श्री मुक्तागिरिसिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गाथा
वसस्थलवरणियरे, पच्छिमभायम्मि कुंथुगिरिसिहरे। कुलदेसभूसणमुणी, णिव्वाणगयाणमो तेसिं।।
(ढार जौगी रासा की)
वनसथलपुर निकट मनोहर, पच्छिम भाग दिशाने । नाम कुन्थुगिरि शिखर तहाँ पर, करम कुलाचल भाने।। कुलभूषण दिशभूषण स्वामी, वेश दिगम्बर धारी। योगनिरोध परमपद पायो, तिनहिं प्रणाम हमारी॥ ऊँ ह्रीं श्री कुलभूषण-देशभूषणमुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः
वंशस्थलगिरिपश्चिमदिग्भागस्थकुन्थलगिरि-सिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गाथा- जसरहरायस्य सुआ, पंचसयाई कलिंगदेसम्भि। कोडिशिलाकोडिमुणी, णिव्वाणगयाणमो तेसिं।।
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