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(सुन्दरी छन्द) सरस शोभा करि सो जानिये पांच मन्दिर परम प्रमानिये। बनि रहीं तिनमें गोखें तहाँ लसत छज्जात थम्म सु हैं जहाँ।। बँध बंधनवार विशाल जू लसत मोती रतन सु माल जू।
भरि रहे सुर विद्याधर जहां राग-रंग अनेक करें तहाँ।। ऊँ ह्रीं अनेकशोभासंयुक्तचैत्यभूमि-पंचमन्दिरस्थ जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
बनि रहे चित्राम सु सार जू पाँच मन्दिर में सुखकर जू।
भूमि-मन्दिर को वर्णन कहो सार-सुन्दरता लखि• गहो।। ॐ ह्रीं अनेकरचनासंयुक्त-चैत्यभूमिमन्दिरस्थ जिनेन्द्राय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आग्नेयदिशा चैत्यभूमिमन्दिर जिनस्थापना
(सुन्दरी छन्द) प्रथम भूमि सु मन्दिर की कही जानि दिश आग्नेयविर्षे सही। पूजिये जिन-बिम्ब सु जानिये करहु आह्वानन विधि ठानिके।।
नैर्ऋत्यदिशा चैत्यभूमिमन्दिर जिनस्थपना
अडिल्ल प्रथम भूमि मन्दिर तनी शोभे जहाँ, दिशा जानि नैर्ऋत्य परम सुन्दर तहाँ। श्री जिनवर के बिम्ब मनोहर पूजिये, करहुँ थापना भव्य सु सन्मुख हूजिये।। वायव्यदिशा चैत्यभूमिमन्दिर जिनस्थापना (जोगीरासा छन्द)
भूमि मन्दिरन कर सुखकारी, पहली जानो भाई। पूजों वायव दिशा, अनूपम, जिनमन्दिर सुखदाई।। श्रीजिनमन्दिर सोहत सुन्दर, सुर-नर-मुनि मिल पूजें।
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