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________________ दो चक्रवर्ति अनंग दस, तहँते करम अरि छूट।। इन आदि साड़े तीन कोडि, मुनीश शिवपद पाय। जल आदि अर्घ बनाय तिन, उरधार मंगल गाय || ऊँ ह्रीं श्रीचक्रवर्तिद्वयकामदेवदशकादिसार्धत्रय-कोटिमुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः रेवानदीपश्चिमदिग्भागस्थ- सिद्धवरकूटसिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथा - बडवाणीवरणयरे, दक्खिणभायम्मि चूलगिरिसिंहरे। इन्द्रजीद कुम्भयणो, णिव्वाणगया णमो तेसिं।। (चौपाई) बड़वानी बड़नयर सुहाई, दक्षिणभाग चूलगिरि गाई। इन्द्रजीत घटकर्ण तहाँ ते, मुक्ति गये हम नमत यहाँ ते ॥ ऊँ ह्रीं श्री इन्द्रजीतकुम्भकर्णयो निर्वाणास्पदेभ्यः बड़वानी बड़नगर ग्रामयो दक्षिणदिग्भागस्थचूलगिरिसिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। गाथा पावागिरिवरसिहरे, सुवण्णभद्दाइ मुणिवरा चउरो। चेलणाणईतडम्मे, णिव्वाणगया णमो तेसिं।। (गीतिका छन्द) वरनगर निकट उत्तंग परवत, नाम पावागिरि परो । ताके समीप नदी जु चेलना, नाम तट ताको धरो ॥ वर ध्यान मुनिवर चार सुवरण, भद्र आदि महान जो। 121
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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