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निन्यानवे कोडीउ, तुंगीगि रि शिवपद लेइउ।
तिनको कर जोड़ जी, ते गुरु पूजों भाव सों जी।।6।। ऊँ ह्रीं श्रीराम-हनुमन्तकुमार-सुग्रीव-सुडील-गव-गवाख्यनील-महानील-कुमारादि-नवनवतिकोटि- प्रमितमुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः श्रीमांगीतुंगी-सिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गाथा- णंगाणंगकुमारा, कोडपञ्चद्धमुणिवरा सहिया।
सुवणागिरिवरसिहरे, णिव्वाणगया णमो तेसि।। नंगानंग कुँवर जुग भास, पांच कोडि अरु लाख पचास।
सोनागिरि चड़ि लहि भवतीर, तिनहिं नमन हम करत सुधीर॥ ऊँ ह्रीं श्रीनंगानंगकुमारादिसार्धपञ्चकोटिमुनीनां निर्वाणापदेभ्यः श्री सोनागिरि सिद्धक्षेत्रेभ्यः
अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गाथा- दहमुहरायस्स सुवा, कोडीपञ्चद्धमुणिवरा सहिया।
रेवाउहयतडग्गे, णिव्वाणगया णमो तेसिं।।
(चौपाई) दसमुखराय तने सुत और, साढ़े पांच कोड़ि मुनि जोर।
रेवानदी उभय तट पाय, मुक्ति गये वन्दों शिरनाय।। ऊँ ह्रीं श्री रावणपुत्रादिसार्धपंचकोटि-प्रमितानां-मुनीनां निर्वाणास्पदेभ्यः श्रीरेवारोधोभ्यः
सिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गाथा- रेवाणइए तीरे, पच्छिमभायम्मि सिद्धवरकूडे। दो चक्की दह कप्पे, आहुट्टयकोडिणिव्वुदे वंदे।।
ढार “ते साधु मेरे उर बसो” रेवानदी तट भाग पश्चिम, सिद्धिवर तहँ कूट।
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