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जल-चन्दन इत्यादि अर्घ्य संजोयकें, जिन पूजत कवि 'लाल' सु हर्षित होयकें।
पूरब मानस्तम्भ जिनेश्वर पूजिये, नाचत गाय बजाय सु हर्षित हूजिये।। ऊँ ह्रीं पूर्वदिशि मानस्तम्भ-स्थित-जिनेन्द्रेभ्यः अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अथ दक्षिणदिशा मानस्तम्भ स्थित जिनप्रतिमा पूजा पूजा प्रारंभ
अडिल्ल मानस्तम्भ अनुपम सुन्दर देखिये, सुर-नर-मुनि-मन-हरत सु नैनों पेखिये।
समोसरण में दक्षिण दिशा सुहावनी, पूजन भविजनवर्ग सु जिनगुण-गावनी।। ॐ ह्रीं दक्षिणदिशि मानस्तम्भस्थितजिनप्रतिमाः अत्रावतारावतरत संवौष्ट। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः
ठः। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधापनम्।
अथाष्टक (अडिल्ल छन्द) सरस उज्जवल नीर सु लीजिये, धार श्री जिनचरण स् दीजिये।
त्रिविध योग सु उज्ज्वल हूजिये, थम्म-मानस दक्षिण पूजिये।। ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि मानस्तम्भ-स्थित-जिनेन्द्रेभ्यः जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयसार सु केसर गारिये, पूजि जिन भवदाह-निवारिये। त्रिविध योग सु उज्ज्वल हूजिये, थम्म-मानस दक्षिण पूजिये।। ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि मानस्तम्भ-स्थित-जिनेन्द्रेभ्यः चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्द्र-ज्योति-समान सु अक्षतं, पुंज देत अखयनिधि-कारणम्।
त्रिविध योग सु उज्ज्वल हूजिये, थम्म-मानस दक्षिण पूजिये।। ऊँ ह्रीं दक्षिणदिशि मानस्तम्भ-स्थित-जिनेन्द्रेभ्यः अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
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