________________
जल आदि अर्घ बनाय नित, उर धार हम पूजन ठयो।।1।। ऊँ ह्रीं श्रीवरदत्त-वरांगकुमारसायरदत्तादिपंचाशल्लक्षकोटित्रयमुनीनां निर्वाणस्पदश्रीतारंगा
सिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गाथा णेमिसामि पज्जण्णो, संबुकुमारो तहेव अणुरुद्धो। बाहत्तरि कोडीओ, उज्जन्ते सत्तसया
सिद्धा॥
(गीतिका छन्द) श्रीनेमिनाथ प्रद्युम्न जी अरु, सम्बुकुमार दयाल जी। अनुरुद्ध मुनि इत्यादि जे, षट्-काय के रखपाल जी।।
सातसें बहत्तरकोडि मुनि, गिरनार तें शिवपद लयो।
जल आदि अर्घ बनाय तिन, उर धारि हम पूजन ठयो।।2।। ऊँ ह्रीं श्रीं नेमीनाथ प्रद्युम्न-शम्बुकुमारानुरुद्धादिमुनीनां सप्तशतकोत्तरद्वासप्ततिकोटिसंख्याना
मुक्तिस्थानेभ्यः श्री गिरनारसिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गाथा- रामसुदा वेण्णिजणा, लाडणारिदाण पंचकोडीओ।
पावागढ़वरसिंहरे, णिव्वाणगया णमो तेसिं।। जुगल रामसुत्त कर्मनि घात, लाड़ देश नृप आदि विख्यात।
पांच कोडि पावागढ़ शीश, मुकति गये वन्दों तिन ईश।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीरामचन्द्रस्य लाडनरेन्द्रपुत्रयादिमुनीनां पंचकोटिप्रमितानां निर्वाणास्यपदेभ्यः
श्रीपावागढ़ सिद्धक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
118