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प्रानी दाख लवंग सु लायची, पिस्तादिक आम अनार हो। प्रानी अजर अमरपद कारने, जिन मुनिगण पूजन कार हो।। प्रानी सिद्ध-भूमि थल पायकें, अरु अतिशय मंगल ठाम हो।
भवि परम उछाह सुधार कें, जिन मुनिपद पूजन कार हो।। ऊँ ह्रीं प्रत्येकनिर्वाणातिशयक्षेत्रेभ्यः फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रानी जल फलादि वसु द्रव्यले, कर कनक रकेवी धार हो। प्रानी जिनवांक्षक जिन जोयकें, जिन मुनिगण पूजन कार हो।। प्रानी सिद्ध-भूमि थल पायकें, अरु अतिशय मंगल ठाम हो।
भवि परम उछाह सुधार कें, जिन मुनिपद पूजन कार हो।। ऊँ ह्रीं प्रत्येकनिर्वाणातिशयक्षेत्रेभ्यः अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सोरठा उत्तम भाव उपाय, श्री जिन तीरथ वन्दना।
कीजे मन वच काय, नय प्रमाण के न्याय कर।। ऊँ ह्रीं प्रत्येकनिर्वाणातिशयक्षेत्रेभ्यः पूर्णाध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अथ प्रत्येकाध्य
गाथा वरदत्तो य वरंगो, सायरदत्तो य तारवरणयरे। आहुट्टयकोडीओ, णिव्वाणगया णमो तेसि।।
(गीतिका छन्द) वरदत्त और वरङ्ग यतिवर, और सायरदत्त जी। इन आदि साढ़े तीन कोड़ी, मुनी हर दखसत्त जी।। तारबर नगर समीपतें वसु, कर्महर शिवपद लयो।
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