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वदि बारसि फागुन मोक्ष गये, तिहुंलोक-शिरोमणि सिद्ध भये।
सु अनन्त-गुनाकर विघ्न-हरी, हम पूजत हैं मनमोद भरी।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-द्वादश्यां मोक्षमंगल-मण्डिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय
अयं निर्वपामीति स्वाहा।।5।।
जयमाला (दोहा) मुनिगण-नायक मुक्तिपति, सूक्त व्रताकर उक्त। भुक्ति-मुक्ति-दातार लखि,
वन्दों तन-मन उक्त।1। जय केवल-भान अमान धरं, मुनि स्वच्छ सरोज-विकासकरं। भव-संकट भंजन लायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं।2।
घन-घात-वनं दव-दीप्त भनं, भविबोध-त्रषातुर मेघघनं। नित मंगलवृन्द वधायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं।3।
गरभादिक मंगलसार धरे, जगजीवनके दुखदंदहरे। सब तत्त्व-प्रकाशन नायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं।4। शिवमारग-मण्डन तत्त्व कह्यो, गुनसार जगत्रय शर्म लह्यो। रुज रागरु दोष मिटायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं।5।
समवसृतमें सुनार सही, गुनगावत नावत भालमही। अरु नाचत भक्ति बढ़ायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं।6।
पग नूपुरकी धुनि होत भनं, झननं झननं झननं झननं। सुरलेत अनेक रमायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक है।7।
घननं घननं घन घंट बजै, तननं तननं तनतान सजे। दृमदृम मिरदंग बजायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं।8। छिन में लघु और छिन थूल बनें, जुत हाव-विभाव विलासपने। मुखतें पुनि यों गुनगायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रत-दायक हैं।9।
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