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पंचकल्याणक - दोहा तिथि दोयज सावन श्याम भयो, गरभागम मंगल मोद थयो।
हरिवन्द-सची पितु-मातु जजें, हम पूजत ज्यौं अघ-ओघ भनें।। ऊँ ह्रीं श्रावणकृष्णा-द्वितीयायां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1।।
बैसाख बदी दशमी वरनी, जनमे तिहिं द्योस त्रिलोकधनी।
सुरमन्दिर ध्याय पुरन्दर ने, मुनिसुव्रतनाथ हमैं सरनै।। ऊँ ह्रीं वैशाखकृष्णा-दशम्यां जन्ममंगल-प्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
तप दुद्धर श्रीधर ने गहियो, वैसाख बदी दशमी महियो।
निरुपाधि समाधि सुध्यावत हैं, हम पूजत भक्ति बढ़ावत हैं।। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा-दशम्यां तपोमंगल-प्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय
अयं निर्वपामीति स्वाहा।।3॥
वर केवलज्ञान उद्योत किया, नवमी वैसाख बदी सुखिया।
हनि मोहनिशा भनि मोखमगा, हम पूजि चहैं भवसिन्धु थगा।। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णा-नवम्यां केवलज्ञानमंगल-प्राप्ताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय
अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥
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