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गुनथान-चतुर्दस-मारगना, उपयोग दुवादश-भेद भनो। इमि बीस विभेद उचारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन हैं।।10।। इन आदि समस्त बखान कियो, भवि - जीवनि ने उर-धार लियो । कितने शिव-वादिन धारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन हैं।।11।। फिर आप अघाति विनाश सबै, शिवधाम विषै थित कीन तबै । कृतकृत्य प्रभू जगतारन हैं, अरनाथ नमों सुखकार हैं।।12।। अब दीनदयाल दया धरिये, मम कर्म-कलंक सबै हरिये । तुमरे गुनको कछु पार न हैं, अरनाथ नमों 'सुखक है॥13॥
(घता छन्द)
जय श्रीअरदेवं, सुरकृतसेवं, समताभेवं, दातारं। अरिकर्मविदारन, शिवसुखकारन, जय जिनवर जग त्रातारं॥14॥ ऊँ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय जयमाला - पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(छन्द-आर्या.)
अरजिनके पदसारं जो पूजै द्रव्य भावसों प्रानी। सो पावै भवपारं, अजरामर - मोक्षथान सुखखानी।।
इत्याशीर्वादः, पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
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