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चैत शुक्ल ग्यारस सब कर्म, नाशि वास किय शिव-थल पर्म।
निहचल गुन-अनंत भंडारी, जजों देव सुधि लेहु हमारी।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णा-अमावस्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीअरनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
जयमाला (दोहा-छन्द) बाहर भीतर के जिते, जाहर अर दुखदाय। ता हर कर जिन भये, साहर शिवपुर-राय॥1॥ राय-सुदरशन जासु पितु, मित्रादेवी माय। हेमवरन-तन वरष वर, नब्बे-सहस सु छाय।।2।।
(छन्द तोटक) जय श्रीधर श्रीकर श्रीपति जी, जय श्रीवर श्रीभर श्रीमति जी। भवभीम-भवोदधि-तारन हैं, अरनाथ नमों सखकारन हैं।।3।।
गरभादिक-मंगल सार धरे, जग-जीवनि के दुखदंद हरे। कुरुवंश-शिखामनि तारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन हैं।।4।।
करि राज छखंड विभूतिमई, तप धारत केवलबोध ठई। गण तीस जहाँ भ्रमवारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन हैं।।5।। भवि-जीवनको उपदेश दियौ, शिव-हेतु सबै जन धारि लियो। जगके सब-संकट-टारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन है।।6।।
कहि बीस-प्ररूपन सार तहाँ, निजशर्म-सुधारस-धार जहाँ। गति-चार होषीपन प्रधारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन हैं।।7। षट्-काय तिजोग तिवेद मथा, पनवीस कषा वसु-ज्ञान तथा। सुर संजम-भेद पसारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन हैं।8॥ रस दर्शन लेश्या भव्य जुगं, षट् सम्यक् सैनिय भेद युगं। जंग हार तथा सु अहारन हैं, अरनाथ नमों सुखकारन हैं।।9।
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