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माघशुक्ल तेरस लयो हो, दुर्द्धर तप अविकार। सुरऋषि सुमनन पूजों, पूजों हो अबार।। धरम जिनेसुर पूजो। पूजों हो। ऊँ ह्रीं माघशुक्ला-त्रयोदश्यां निःक्रमणमहोत्सव-मंडिताय श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
पौषशुक्ल पूनम हने अरि, केवल लहि भवितार। गणसुर नरपति पूज्यो, पूजों हो, अबार। धरम जिनेसुर पूजो। पूजों हो। ॐ ह्रीं पौषशुक्ला-पूर्णिमायां केवलज्ञान- मंडिताय श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
जेठशुकल तिथि चौथ की हो, शिव समेदतें पाय। जगत-पूजपद पूजों, पूजों हो अबार।। धरम जिनेसुर पूजो। पूजों हो। ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्ला-चतुर्थ्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।51
जयमाला - दोहा घनाकार करि लोक-पट, सकल-उदधि-मसि तंत। लिखै शारदा कलम गहि, तदपि न तुव गुन-अंत।।1।।
(छन्द-पद्धरि) जय धरमनाथ जिन गुन-महान, तुम पदको मैं नित धरों ध्यान। जय गरभ-जनम-तप-ज्ञानयुक्त, वर-मोक्ष सुमंगल शर्म-भुक्त।।2।।
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