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आम्र काम्रक अनार सारफल-भार मिष्ट सुखदाई। सो ले तुम-ढिग धरहुँ कृपानिधि, देहु मोक्ष-ठकुराई।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी।
पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।8।
आठों दरब साज शुचि चितहर, हरषि-हरषि गुनगाई। बाजत दृम दृम दृम मृदंग गत, नाचत ता थेई थाई।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी।
पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।9।
पंचकल्याणक (राग-टप्पा) पूजों हो अबार, धरम जिनेसुर पूजो। पूजों हो।टेक।
आ3 सित बैशाखकी हो, गरभ-दिवस अधिकार। जगजन-वांछित पूजों, पूजों हो अबार। धरम जिनेसुर पूजो। पूजों हो। ऊँ ह्रीं वैशाखशुक्ला-अष्टम्यां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।।
शुकल माघ तेरसि लयो हो, धरम धरम-अवतार। सुरपति सुरगिर पूज्यो, पूजों हो अबार।। धरम जिनेसुर पूजो। पूजों हो। ऊँ ह्रीं माघशुक्ला-त्रयोदश्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2।
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