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नव में नभ-जोतिष पंच भरे, दशमें दिवि-देव समस्त खरे। नरवन्द इकादश में निवसें, अरु बारह में पशु सर्व लसें।8। तजि वैर, प्रमोद धरे सब ही, समता-रस मग्न लसें तब ही। धुनि दिव्य सुनें तजि मोहमलं, गनराज असी धरि ज्ञानबल।9। सबके हित तत्त्व बखान करें, करुना-मन-रंजित शर्म भरें। वरने षद्रव्य तनें जितने वर भेद विराजतु हैं तितने।10। पुनि ध्यान उभै शिवहेतु मना, इक धर्म दती सुकलं अधुना। तित धर्म सुध्यान तणों गुनियो, दशभेद लिखे भ्रम को हनियो।11।
पहलो अरि नाश अपाय सही, दुतियो जिन बैन उपाय गही। त्रिति जीवविषै निजध्यावन है, चवथो सु अजीव रमावन है।12। ___ पनमों सु उदै-बलटारन है, छहमों अरि-राग-निवारन है। भव-त्यागन-चिंतन सप्तम है, वसुमों जितलोभ न आतम है।13।
नवमों जिनकी धुनि सीस धरे, दशमों जिनभाषित हेत करे। इमि धर्म तणों दश भेद भन्यो, पुनि शुक्लतणो चद येम गन्यो।14।
सुपृथक्त-वितर्क-विचार सही, सुइकत्व-वितर्क-विचार गही। पुनि सूक्ष्मक्रिया-प्रतिपात कही, विपरीत-क्रिया-निरवृत्त लही।15। इन आदिक सर्व प्रकाश कियो, भवि-जीवन को शिव-स्वर्ग दियो। पनि मोक्षविहार कियो जिनजी, सुखसागर मग्न चिरं गुनजी।16।
अब मैं शरना पकरी तुमरी, यसुधि लेहु दयानिधि जी हमारी। भव-व्याधि निवार करो अब ही, मति ढील करो सुख द्यो सब ही।17।
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