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कुवार की आठें शुद्ध बुद्धी, भये महामोक्ष-सरूप शुद्धा। सम्मेदतैं शीतलनाथ स्वामी, गुनाकरं तासु पदं नमामी |
ऊँ ह्रीं आश्विनशुक्ला- अष्टम्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 51
जयमाला छंद (लोलतरंग)
आप अनंत-गुनाकर राजे, वस्तुविकाशन भानु समाजे।
मैं यह जानि गही शरना है, मोहमहारिपुको हरना है। 1 ।
दोहा
हेम-वरन तन तुंग धनु, नव्वै अति अभिराम। सुरतरु-अंक निहारि पद, पुनि-पुनि करों प्रणाम | 2 |
छन्द तोटक
जय शीतलनाथ जिनन्दवरं, भवदाघ - दवानल मेघझरं । दुख-भूभृत- भंजन वज्र समं, भवसागर-नागर पोत-पमं।3। कुह-मान-मयागद-लोभ हरं, अरि विघ्नगयंद मृगिंद वरं । वृष-वारिदवृष्टन सृष्टिहि तू, परदृष्टि विनाशन सुष्टु पितू। 4।
समवसृत-संजुत राजत हो, उपमा अभिराम विराजतु हो । वह बारह-भेद सभाथित को, तित धर्मबखान कियो हितको | 5 |
पहले महि श्रीगणराज रजैं, दुतिये महिं कल्पसुरी जु सजैं। त्रिति गणनी गुन भूरि धेरै, चवथे तिय-ज्योतिष जोति भरें | 6| तिय-विंतरनी पनमें गनिये, छहमें भुवनेसुर-तिय भनिये। भुवनेश दशों थित सत्तम हैं, वसुमें वसु-विंतर उत्तम हैं। 7 ।
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