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सप्त पग जाय शिर नाय वन्दन करी चलन उमग्यो तबै मानि धनि धनि घरी |4|
सात विधि सैन गज वृषभ रथ बाज ले, गन्धरव नृत्यकारी सबै साज ले। गलित-मद-गण्ड ऐरावती साजियो, लच्छ-जोजन सुतन वदन सत राजियो । 5 । वदन वसु-दन्त प्रति-दन्त सरवन भरे, तासु-मधि शतक पनबीस कमलिनि खरे। कमलिनी मध्य पनवीस फूले कमल, कमलप्रति कमलमँह एकसौ-अ -आठ दल|6| सर्वदल कोड़-शत-वीस परमान जू, तासुपर अपछरा नचहिं जुतमान जू। तततता तततता विततता ताथ ई, धृगतता धृगतता धृगतता में लई | 7 | धरत पग सनन नन सनन नन गगन में, नुपुरें झनन नन झनन नन पगन में नचत इत्यादि कई भाँति सों मगन में, केइ तित बजत बाजे मधुर पगन में। 8 । केइ दृम दृम सुदृम दृम मृदंगनि धुनै, केइ झल्लरि झननन झननन झंझनै । केइ संसागृदि संसागृदि सारगि सुर, केइ बीना पटह बंसि बाजें मधुर | 9 | केइ तनननन तनननन ताने पुरै, शुद्ध उच्चारि सुर केई पाठें फुरै।
केइ झुक-झुकि फिरे चक्र-सी भामनी, धृगततां धृगततां परम-शोभा बनीं।10। केइ छिन निकट छिन दूर छिन थूल-लघु धरत वैक्रियक परभावसों तन सुभगु। केई करताल-करताल तल में धुनें, तत वितत घन सुषिरि जात बाजें मुनै।11।। इन्हें आदिक सकल साज संग धारिके, आय पुर तीन फेरी करी प्यार हैं। सचिय तब जाय परसूत-थल मोदमें, मातु करि नींद लीनों तुम्हें गोद में। 12 । आन-गिरवान नाथहिं दियो हाथ में, छत्र अर चमर वर हरि करत माथ में। चढ़े गजराज जिनराज गुन जापियो, जाय गिरिराज पांडुकशिला थापियो।13। लेय पंचम उदधि-उदक कर-कर सुरनि, सुरन कलशनि भेर सहित चर्चित पुरनि। सहस अरु आठ शिर कलश ढारे जबैं, अघघ घघ घघघ घघा भभभ भभ भौ त ।14। धधध धध धधध धध धुनि मधुर होत है, भव्य जन हंसके हरस उद्योत है। भयो इमि न्हौन तब सकल गुन रंग में, पोछि श्रृंगार कीनों शची अंग में।15।
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