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जनमके तिथि श्रीधर ने धरी, तप समस्त प्रमादन को हरी।
नृपमहेन्द्र दियो पय भावसो, हम जजें इत श्रीपद चावसों।। ॐ ह्रीं ज्येष्ठशुक्ला-द्वादश्यां निष्क्रमणकल्याण-प्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।
भ्रमर फागुन छट्ठ सुहावनो, परम केवल ज्ञान लहावनो। समवसर्न विषै वृष भाखियो, हम जजें पद आनन्द चाखि यो। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-षष्ठ्यां ज्ञानसाम्राज्य-प्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4।
असित फागुन सातय पावनों, सकल कर्म कियो क्षय भावनो। गिरिसमेद थकी शिव जातु हैं, जजत हि सब विघ्न विलातु हैं।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-सप्तम्यां मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।51
जयमाला (दोहा) तुंग अंग धनु दोय-सौ, शोभा सागरचन्द। मिथ्या-तपहर सुगुनकर, जय सुपास सुखकंद।1।
छन्द कामिनी मोहन जयति जिनराज शिवराज हितहेत हो, परमवैराग आनन्द भरि देत हो।
गर्भ के पूर्व षट्मास धनदेव ने, नगर निरमापि वाराणसी सेवने।2। गगनसों रतन की धार बहु वर्ष ही, कोडि क्षय अर्द्ध त्रैवार सब हर्षहीं।
तातके सदन गुनवदन रचन रची, मातुकी सर्वविधि करत सेवा शची।3। भयो जब जनम तब इन्द्र-आसन चल्यो, होय चकित तुरित अवधितै लखि भल्यो।
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