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गर्भ औ' जन्म निःकर्मकल्यान में, सत्त्व को शर्म पूरे सबै थान में। वंश-इक्ष्वाकु में आप ऐसे भये, ज्यों निशा-सर्द में इन्दु स्वेच्छै ठये।3।
(लक्ष्मीवती छन्द) होत वैराग्य लौकांत-सुर बोधियो, फेरि शिविकासु चढ़ि गहन निज सोधियो। घाति चौघातिया ज्ञान केवल भयो, समवसरनादि धनदेव तब निरमयो।4।
एक है इन्द्र नीली-शिला रत्न की, गोल साढ़ेदशै जोजने रत्न की। चारदिश पैडिका बीस हज्जार है, रत्न के चूर का कोट निरधार है।5।
कोट चहुँओर चहुँद्वार तोरन बँचे, तास आगे चहूँ मानथंभा रचे। मान मानी तज जास ढिंग जायके, नम्रता धार सेवें तुम्हें आयके।6।
(छन्द लक्ष्मीधरा) बिंब सिंहासनों पै जहाँ सोहहीं, इन्द्र-नागेन्द्र केते मने मोहहीं। वापिका वारिसों जत्र सोहै भरी, जास में न्हात ही पाप जावै टरी।7। तास आगे भरी खातिका वारिसों, हंस सूआदि पंखी रमैं प्यारसों। पुष्प की वाटिका बागवृक्षं जहाँ, फूल और फलें सर्व ही है तहाँ।8।
कोट सौवर्ण का तासु आगे खड़ा, चार दर्वाज चौ' ओर रत्न जड़ा। चार उद्यान चारों दिशा में गना, है धुजा-पंक्ति और नाट्यशाला बना।9। __ तासु आगें त्रितीकोट रूपामयी, तूप नौ जासु चारों दिशा में ठयी। धाम सिद्धांत-धारीन के हैं जहाँ, औ' सभाभूमि है भव्य तिष्ठं तहाँ।10।
तास आगें रची गंधकूटी महा, तीन है कट्टिनी सार-शोभा लहा। एक पै तौ निधैं ही धरी ख्यात हैं, भव्यप्राणी तहाँ लौं सबै जात हैं।11।
दूसरी पीठ पै चक्रधारी गमै, तीसरे प्रातिहार लशै भाग में। तास पै वेदिका चार थंभान की, है बनी सर्वकल्यान के खान की।12।
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