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पौष-शु
- शुक्ल - चौदशि को घाते, घातिकरम दुःखदाय । उपजायो वरबोध जास को, केवल नाम कहाय ॥ समवसरन लहि बोधि-धरम कहि, भव्य जीव-सुखकंद। मोकों भवसागरतैं तारों, जय जय जय अभिनंद।।
ॐ ह्रीं पौषशुक्ल चतुर्दश्यां केवलज्ञान-प्राप्ताय श्री अभिनंदननाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 4।
जोग निरोध अघाति-घाति लहि, गिरसमेदतें मोख। मास सकल-सुखरास कहे, बैशाख - शुकल - छठ चोख चतुर-निकाय आय तित कीनो, भगत-भाव उमगाय। हम पूजतैं इत अरघ लेय जिमि, विघन-सघन मिट जाय।।
ॐ ह्रीं बैशाखशुक्ल षष्ठीदिने मोक्षमंगल-प्राप्ताय श्री अभिनंदननाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 5।
जयमाला
(दोहा)
तुंग सु तन धनु-तीनसौ, औ पचास सुखधाम। कनक-वरन अवलोकिकें, पुनि-पुनि करूँ प्रणाम।1।
(छन्द लक्ष्मीधरा)
सच्चिदानंद सद्ज्ञान सद्दर्शनी, सत्स्वरूपा लई सत्सुधा-सर्सनी। सर्व-आनंदकंदा महादेवता, जास पादाब्ज सेवैं सबै देवता। 2।
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