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महा उग्र तप-शूर नमस्ते, महामौन गुणभूरि नमस्ते। धर्मचक्रि वृषकेतु नमस्ते, भव-समुद्र-शत-सेतु नमस्ते।।8।। _ विद्याईश मुनीश नमस्ते, इन्द्रादिक-नुत-शीश नमस्ते। जय रत्नत्रय राय नमस्ते, सकल जीव सुखदाय नमस्ते।।9।। अशरण शरण-सहाय नमस्ते, भव्य सुपंथ लगाय नमस्ते। निराकार साकार नमस्ते, एकानेक-अधार नमस्ते।।10।
लोकालोक विलोक नमस्ते, त्रिधा सर्व गुणथोक नमस्ते। सल्ल-दल्ल-दल-मल्ल नमस्ते, कल्लमल्ल जितछल्ल नमस्ते।।11॥
___ भुक्तिमुक्ति-दातार नमस्ते, उक्तिक्ति श्रृंगार नमस्ते। गुण अनन्त भगवंत नमस्ते, जय जय जय जयवंत नमस्ते॥12॥
श्री समुच्चय चतुर्विंशति जिनपूजा - छन्द कवित्त वृषभ अजित शंभव अभिनंदन, सुमति पदम सुपाश्व जिनराय।
चंद्र पुहुच शीतल श्रेयांश नमि, वासुपूज पूजित-सुरनाय।। विमल अनंत धरम जय उज्ज्वल, शांति कुन्थु अर मल्लि मनाय।
मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्वप्रभु, वर्द्धमान पद पुष्प चढ़ाय।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतचतुर्विंशति जिनसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतचतुर्विंशति जिनसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतचतुर्विंशति जिनसमूह!अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्निधापनम्।
अष्टक (चाल-नंदीश्वरद्वीप की) मुनिमनसम उज्ज्वल नीर, प्राशुक गंध भरा। भरि कनककटोरी धीर, दीनो धर धरा।। चौबीसों श्री जिनचन्द, आनन्दकन्द सही। पदजजत हरत भवफंद पावत मोक्षमही।।
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