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वर्तमान चतुर्विंशति जिनपूजा ( काशी निवासी स्वर्गीय कविवर वृन्दावनजी कृत)
बंदौ पांचो परमगुरु, सुरगुरु वंदत जास। विघ्नहरण मंगलकरण, पूरण परम प्रकाश।। 1 ।। चोबीसौं जिनपति नमौं, नमौं शारदा माय | शिव मगसाधक साधु नमि, रचैं पाठ सुखदाय || 2 ||
॥ नामावली स्तोत्र ॥
छन्द नयनमालिनी था तामरस व चण्डी - 16 मात्रा जय जिनन्द सुखकन्द नमस्ते, जय जिनन्द जितफन्द नमस्ते। जय जिनद वरबोध नमस्ते, जय जिनन्द जितक्रोध नमस्ते ॥1॥ पाप-ताप-हर-इन्दु नमस्ते, अर्ह-वर्ण-जुतबिंदु नमस्ते।। शिष्टाचार विशिष्ट नमस्ते, इष्टमिष्ट उकृष्ट नमस्ते॥2॥ पर्म धर्म वर शर्म नमस्ते, मर्म भर्म-घन धर्म नमस्ते। दृग्विशाल वरभाल नमस्ते, हृदिदयाल गुनमाल नमस्ते ॥ 3 ॥ शुद्ध बुद्ध अविरुद्ध नमस्ते, ऋद्धि-सिद्धि-वरवृद्धि नमस्ते। वीतराग विज्ञान नमस्ते, चिद्विलास धृतध्यान नमस्ते ॥4॥ स्वच्छ गुणांबुद्धि रत्न नमस्ते, सत्त्वहितंकरयत्न नमस्ते। कुनय करी मृगराज नमस्ते, मिथ्या-खग-वर-बाज नमस्ते॥5॥ भव्य भवोदधितार नमस्ते, शर्मामृतसितसार नमस्ते। दर्श-ज्ञान- सुख-वीय नमस्ते, चतुरानन धरधीर्य नमस्ते ॥6॥ हरि हर ब्रह्मा विष्णु नमस्ते, मोहमर्द्दमतु विष्णु नमस्ते। महादान महभोग नमस्ते, महाज्ञान महजोग नमस्ते॥7॥
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