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पावापुरी उद्यान सार, तहाँ पधारें आन के।। ऊँ ह्रीं कार्तिककृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय महावीरजिनेन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
इत्युच्चार्य कर्णिकायां पुष्पांजलि क्षिपेत्।
(रागविलावल) प्रकृति सात महावीर प्रभू, जिन प्रथम विदारी। तीन आठ जे भानि के, नव छत्तीस सिधारी।।
दस में लोभ द्वादशें, सोलह तहाँ जुटारी। त्रेसठ प्रकृति खिपाइयो, तिन जिन की बलिहारी।।1।।
दोहा
सैतालिस प्रकृति हनी, कर्म घातिया वीर।
नाम तीनदश आयु त्रय, नाशि भये महावीर।।2।। ऊँ ह्रीं निर्वाणकल्याणप्राप्ताय महावीरजिनेन्द्राय अर्घ्यम निर्वपामीति स्वाहा।
जयमाला - दोहा पंच नामधर ते सुगुरु, पावापुर वन आय। शेष करम रिपु जीतने, शिवमग चलन उपाय।
(छन्द मात्रिक) आये जहँ त्रिजगपति, ध्यान कीनो महा। तृतिय पद शुकल माड़ो, सुहानो तहाँ।। तब प्रभू दिव्यध्वनि, शब्द-रहिते भये। अन्त के दिवस वा-की, चतुर्दश रहे।। प्रभु गये उल्लङ्घि कर, तेर गुणस्थानते। चढ़ अजोगे शुकल, तुरिये पद ध्यानते।। जोग सु निरोध करि, चरम-जुग समय जे। हनि बहत्तर चरम, समय त्र्योदश जजे।।
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