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आम्र काम अनारस केला हेम थाल में कर बहु भेला।
पावे मोक्ष महा ठकुराई, जिनवर धर्म यजो रे भाई।। ॐ ह्रीं श्री अरहन्तदेवकथित स्याद्वाद जिन धर्मेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति
स्वाहा।।8।
नीर आदिक द्रव्य सुन्दर करते अर्चन सतत पुरन्दर।
पावे पद अविनाशी सुखाई जिनवर धर्म यजो रे भाई।। ऊँ ह्रीं श्री अरहन्तदेवकथित स्याद्वाद जिन धर्मेभ्यो अनध्य पद प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति
स्वाहा॥9॥
अथ प्रत्येक पूजा
कामिनी मोहन क्रोध महानीच है स्वभाव भुलावते। धार प्राणि मात्र क्रोध दुक्ख का पावते।। साधु जन जीत क्षमा भाव उर लावते। पाय वह मोक्ष सौख्य भ्रमण नहीं खावते।।
ऊँ ह्रीं श्री उत्तम क्षमा धर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1।।
अष्ट मद जीव से लगे अनादि काल से। पाय दुक्ख जीव महा गर्व की चाल से।। साधुजन जीत उस गर्व को न ध्यावते। पाय वह मोक्ष सौख्य भ्रमण नहीं खावते।।
ऊँ ह्रीं श्री उत्तम मार्दव धर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2।
कुटिलताधार तिर्यंच गति जावते। लाद भार बन्ध वध दुक्ख का पावते।। साधुजन जीत मन सरलता लावते। पाय वह मोक्ष सौख्य भ्रमण नहीं खावते।।
ऊँ ह्रीं श्री उत्तम आर्जव धर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।3।।
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