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होकर खड़ेजे असन करते राग नहिं मन धरत हैं। जे साधते शिवमग सदा ते कर्म रिपु को हरत है।। ते धु मेरे उरवसो सब पाप क्षण में नाश हो।
पूज वसु विध अघ्य लेकर ज्ञान दिव्य प्रकाश हो।।
ऊँ ह्रीं श्री ठाडे अहार मूल गुण धारक साधु देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
पवन चालै धूल आवे गातमे चिप जाय है।
हो मैली देह सारी फिर न्हवन नहि लाय है।।
ते
साधु 'मेरे उरवसो सब पाप क्षण में नाश हो । पूज वसुविध अ लेकर ज्ञान दिव्य प्रकाश हो।।
ऊँ ह्रीं श्री स्नान त्याग मूल गुण धारक साधु देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥7॥
पंच व्रत अरु पंच समिति पंच इन्द्रिय वश करे । षट करे आवश्यक निरन्तर सप्तगुण चित आदरे। ते साधु मेरे उरवसो सब पाप क्षण में नाश हो।
पूज वसु विध अघ्य लेकर ज्ञान दिव्य प्रकाश हो।।
ऊँ ह्रीं श्री अष्टा विंशति मूल गुण धारक साधु देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
जयमाला- दोहा
मंगल मय तब नाम से पाप सकल नशि जाय।
कहुँ श्रेष्ठ जय मालिका जो है शिव फलदाय
जय नगन दिगम्बर रूप धार, जो तीर्थंकर का रूप सार । जय मुक्ति नगरी का पन्थ जान, सिर नावे सुरपति नृप महान।।1।। जय परम गुरु हो सुखद आप, भवि जीव करे तब नित्य जाप । जय मोह रिपु को चूर चूर, जय आतम रस गुण पूर पूर||2||
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